संकल्प शक्ति से असंभव से असंभव कार्य भी संभव हो पाता है, यह मैंने जीवन में कई बार अनुभव किया है. आज एक बार फिर संकल्प शक्ति का स्वाद चखा. युवावस्था से ही मेरी इच्छा थी कि मुख्य उपनिषदों का अध्ययन करूँ. व्रत लिया था कि मृत्यु के पहले यह अवश्य करूँगा. आज यह व्रत पूरा हुआ. पिछले 1 महीने में 18 उपनिषदों का अध्ययन किया डॉक्टर राधाकृष्णनन की किताब The Principal Upanishads से.
उपनिषद सनातन धर्म की महानतम उपलब्धियों में से एक हैं. परम तत्व की खोज और विवेचना इन उपनिषदों का केंद्र है. परम तत्व से आशय उस घटक से है जिससे इस पूरे ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है. यह एक बहुत ही रोचक और रहस्यमय विषय है. सैकड़ों खोजी ऋषियों ने इस विषय पर मंथन, चिंतन, मनन, संवाद किया, और अपनी निष्कर्षो को विरासत के रूप में हमारे लिए छोड़ कर गए. चूँकि प्राचीन काल में ज्ञान को लिखित रूप में संरक्षित करने की कोई सुगम व्यवस्था नहीं थी, इसीलिए इसे मौखिक माध्यम से, याद कर करके कई पीढ़ियों तक हस्तांतरित किया गया. कितना श्रम लगा होगा इस असाध्य कार्य में! हम ऐसे ज्ञान प्रेमियों के हमेशा ऋणी रहेंगे. साथ ही, पश्चिम के उन अविष्कारकों को भी नमन जिन्होंने लेखन और छपाई की सरल पद्धतियाँ विकसित कर इस ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाया.
वैसे तो उपनिषदों की विषय सामग्री बहुत गहरी और सारगर्भित है, लेकिन कुछ बिंदुओं पर प्रक्षेपण स्पष्ट दिखाई देता है. प्रक्षेपण से अर्थ है मिलावट करना. यह कार्य कुछ लोभी और कपटी लोगों द्वारा वंचित समुदायों के शोषण के लिए किया जाता है. इसीलिए यह आवश्यक हो जाता है कि उपनिषदों का अध्ययन किसी अनुभवी व्यक्ति के मार्गदर्शन में किया जाए. मेरी दृष्टि में उपनिषदों को सही ढंग से समझने के लिए योग और ध्यान का आधार चाहिए क्योंकि इसमें कुछ ऐसे विषयों पर चर्चा है जिसे बौद्धिक तल पर नहीं समझा जा सकता; उसे अनुभव ही किया जा सकता है.
मेरा व्रत पूरा होने का समाचार सुनकर कुछ छात्र बेहद उत्साहित हुए हैं. उन्होंने भी उपनिषदों को पढ़ने का लक्ष्य बनाया है. उन सभी को शुभकामनाएँ.